Sunday, October 9, 2016
आश्विन शुक्ल दशमी का पर्व अत्यन्त प्राचीन-काल से उत्सव के रूप में मनाने की परम्परा भारतीय समाज में प्रचलित है ! अद्यतन काल में दशहरा के नाम से प्रचारित इस पर्व को त्रेता युग के मर्यादा- पुरुषोत्तम राम की लंकापति रावण पर विजय के रूप में रूढ़ किया गया है ! रावण को दशानन मान उसके वध से सम्भवत: दश- हरा शब्द को व्याख्यायित किया गया है ! शारदीय/आश्विन नवरात्र में भारत में व अन्य कई देशों में जहाँ भी हिन्दू अपनी परम्परा से जुड़े हैं, रामकथा का मंचन रामलीला के नाम से होता है जिसका समापन दशमी- दशहरा के दिन रावण- मेघनाद व कुम्भकरण के पुतलों को अग्नि के समर्पण करके किया जाता है ! नगरों- ग्रामों में अत्यन्त उल्लास-पूर्वक इस उत्सव का आनन्द भारतीय समाज में एक नूतन स्फूर्ति का संचार करता है ! यहाँ ये ध्यातव्य है कि भारत के पूर्व में विशेषकर बंगाल में आश्विन शुक्ल-पक्ष के शारदीय नवरात्र का विशेष महत्व है ! दुर्गा- पूजा नाम से पूरे बंगाल में उत्सव के वातावरण में देवी दुर्गा की मूर्तियों की स्थापना से लेकर अन्त में उन मूर्तियों के विसर्जन तक में बंगाल का समाज प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक संलग्न रहता है ! इसी प्रकार पश्चिम में विशेषकर गुजरात में इन दिनों गरबा का आयोजन और उस अवसर पर नृत्य- डांडिया लोक-प्रसिद्ध हैं !
शारदीय नवरात्र के अवसर पर ग्रीष्म व वर्षा ऋतु के उपरान्त शीतोष्ण वातावरण में सुखद अनुभूति के कारण प्रकृति के साथ समन्वयपरक हिन्दू संस्कृति, अनुकूल ऋतु में पौष्टिक पदार्थों के सेवन से शक्ति- संचय, साक्षात् प्रकृति स्वरूपा स्त्री के विभिन्न गुणों को आत्मसात करने के लिए देवी की अपासना- आराधना, कृषि के माध्यम से धन-धान्य प्राप्त करने के स्वभाव व प्राप्ति पर उत्सव मनाने के कारण धान- इक्षु के साथ मूली- सिंघाड़े- केले आदि के आगमन को देव- अर्पण पूर्वक ग्रहण, शास्त्र-पूजन करके प्रतिपदा पर रोपित जौ की बालियों को कानों पर व शिर पर धारण करके घर की स्त्रियों द्वारा तिलक से विजय का आशीर्वाद ग्रहण करके बहिर्गमन......यही संक्षेप में व्यवस्था कही जा सकती है शारदीय नवरात्र के पश्चात् विजया दशमी की !
शास्त्रावलोकन करें तो-
"आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये !
सा कालो विजयो ज्ञेय: सर्वकार्यार्थ सिद्धये !!"- ज्योतिर्निबंध
अर्थात- आश्विन शुक्ला दशमी को तारकोदय के समय 'विजय' नामक मुहूर्त होता है जो सम्पूर्ण कार्यों में सिद्धिप्रद होता है !
"श्रवणर्क्षे तु पूर्णायां काकुत्स्थ: प्रस्थितो यत: !
उल्लान्घयेयु: सीमान्तम् तद्दिनर्क्षे ततो नरा: !!
अर्थात- क्योंकि भगवान राम ने श्रवण नक्षत्र से युक्त पूर्णातिथि अर्थात दशमी को (रावण विजय के लिए) प्रस्थान किया था, अत: उस दिन सब मनुष्यों को प्रगति के लिए सीमा का उल्लंघन करना अपेक्षित है !
विजया दशमी के दिन त्रेता में दशरथ-पुत्र राम ने शास्त्रोक्त परम्परा का अनुसरण करते हुए अंतिम निर्णायक विजय के लिए अथवा युद्ध के आरम्भ के लिए प्रस्थान किया होगा, ऐसा संकेत उपरोक्त श्लोक से मिलाता है, किन्तु रावण वध के वर्णन के अन्तर्गत (वाल्मीकीय रामायण- युद्ध काण्ड- १०८वां सर्ग ) http://www.valmikiramayan.net/utf8/yuddha/sarga108/yuddha_108_frame.htm
में तिथि का संकेत कहीं नहीं है !
इसी प्रकार गोस्वामी तुलसीदास भी श्रीरामचरितमानस के लंका काण्ड में रावण-वध का उल्लेख करते हुए तिथि का संकेत नहीं देते हैं !
किन्तु तो भी भारतीय- अभारतीय जनमानस के विजया-दशमी सम्बन्धी ज्ञान में इस दिन राम ने रावण का संहार किया, ये ही समाहित है, बहुधा रूढ़ी यथार्थ की अपेक्षा अधिक स्वीकार्य हो जाती है, ऐसा विद्वानों का मत है !
विजया दशमी के इस पावन पर्व पर सभी के प्रति शुभकामना और भारत के परम वैभव प्राप्ति की कामना !
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा विजया दशमी पर शस्त्र पूजा व पथ संचलन वास्तव में इस पर्व की सांस्कृतिक चेतना के आदर्श परिचायक हैं !
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